
यह मामला अंतरराष्ट्रीय छात्रों और अमेरिकी इमिग्रेशन सिस्टम के बीच एक गंभीर टकराव को उजागर करता है। आइए विस्तार से समझते हैं:
मामला क्या है?
तीन भारतीय और दो चीनी छात्रों ने अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) और यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) के खिलाफ एफ-1 वीज़ा स्टेटस को लेकर न्यायालय में मुकदमा दायर किया है।
छात्रों का आरोप:
- एकतरफा फैसला: अधिकारियों ने बिना किसी उचित नोटिस या सफाई दिए, सैकड़ों विदेशी छात्रों के F-1 स्टेटस को समाप्त कर दिया।
- कॉलेज की भूमिका: कहा गया है कि जिन कॉलेजों में ये छात्र नामांकित थे, वे वास्तविक नहीं थे या गोपनीय रूप से ICE द्वारा संचालित किए जा रहे थे (जैसे कि University of Farmington का उदाहरण अतीत में सामने आया था)।
- सीधे प्रभाव:
- छात्र अब न तो पढ़ाई जारी रख सकते हैं,
- और न ही ऑन-कैंपस या ऑफ-कैंपस जॉब के लिए पात्र हैं।
- डिपोर्टेशन का खतरा भी बना हुआ है।
छात्रों की मांग:
- कोर्ट ट्रंप प्रशासन द्वारा लिए गए फैसले को रद्द करे (क्योंकि यह पॉलिसी उसी काल में शुरू हुई थी)।
- उनका वीज़ा स्टेटस बहाल किया जाए।
- उन्हें फिर से पढ़ाई और नौकरी की अनुमति दी जाए।
कानूनी पहलू:
- छात्रों का तर्क है कि DHS और ICE ने “प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम (Administrative Procedure Act)” का उल्लंघन किया है।
- उनके अनुसार, कोई भी निर्णय लेने से पहले उचित प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी, जिसमें नोटिस, विचार, और अपील का मौका शामिल होता है।