गुनुंग पडांग: धरती के नीचे छिपा दुनिया का सबसे पुराना पिरामिड,

गुनुंग पडांग ( इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर स्थित एक प्राचीन स्थल है, जिसे दुनिया का सबसे पुराना पिरामिड माना जा रहा है। यह स्थल पश्चिमी जावा में स्थित है और पहली बार 19वीं शताब्दी में खोजा गया था, लेकिन हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों की गहरी पड़ताल ने इसे वैश्विक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया है।गुनुंग पडांग को पहले एक प्राकृतिक पहाड़ी या मेगालिथिक स्थल (बड़े पत्थरों से बना प्राचीन स्थल) माना जाता था, लेकिन हालिया अध्ययन बताते हैं कि यह वास्तव में एक प्राचीन मानव-निर्मित संरचना है, जो हजारों साल पुरानी हो सकती है। वैज्ञानिकों ने आधुनिक तकनीकों, जैसे भूभौतिकीय सर्वेक्षण , रेडियोकार्बन डेटिंग और थ्री-डी इमेजिंग का उपयोग करके पाया कि इस स्थल के नीचे एक विशालकाय संरचना मौजूद है, जो एक प्राचीन पिरामिड जैसा दिखता है।यह अनुमान इस तथ्य पर आधारित है कि पिरामिड के निर्माण में उपयोग किए गए पत्थरों की उम्र बहुत अधिक है। अगर यह पुष्टि होती है, तो इसका मतलब होगा कि गुनुंग पडांग मिस्र के पिरामिडों (जो लगभग 4,500 साल पुराने हैं) और गेबेकली तेपे (जो लगभग 12,000 साल पुराना है) से भी पुराना है।

गुनुंग पडांग और सभ्यता का रहस्य

इतनी प्राचीन संरचना यह सवाल उठाती है कि उस समय कौन-सी सभ्यता मौजूद थी, जिसने इस पिरामिड का निर्माण किया था। यदि यह 20,000 साल पुराना साबित होता है, तो इसका मतलब होगा कि यह संरचना आखिरी हिमयुग  के समय की हो सकती है, जब आधुनिक मानव समाज शिकार और कंद-मूल इकट्ठा करने में व्यस्त था।यह खोज हमारे इतिहास और मानव सभ्यता की उत्पत्ति को फिर से लिख सकती है। पारंपरिक रूप से यह माना जाता था कि सभ्यता लगभग 10,000 साल पहले ही विकसित हुई थी, लेकिन गुनुंग पडांग बताता है कि उन्नत निर्माण तकनीक उससे भी हजारों साल पहले मौजूद थी।

वैज्ञानिक शोध और विवाद

गुनुंग पडांग पर किए गए शोधों को लेकर वैज्ञानिक समुदाय में विवाद भी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह संरचना पूरी तरह मानव-निर्मित नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक पहाड़ी पर बनी एक प्राचीन धार्मिक संरचना हो सकती है। हालांकि, इंडोनेशियाई शोधकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह एक मानव-निर्मित पिरामिड है।इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो ने भी इस स्थल पर गहरी रुचि दिखाई है, और इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित करने की योजनाएं बनाई जा रही हैं।

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