
मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका की हालिया सैन्य कार्रवाई को लेकर कई दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं। यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों पर अमेरिकी हमले को कुछ लोग क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने की कोशिश मान रहे हैं, तो कुछ इसे ईरान पर दबाव बढ़ाने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं।हूती विद्रोही लंबे समय से लाल सागर में शिपिंग मार्गों और इजरायल पर हमले कर रहे हैं। अमेरिका और उसके सहयोगियों का कहना है कि यह हमले अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए खतरा हैं और इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है। इसलिए अमेरिका का यह कदम शांति और सुरक्षा स्थापित करने की दिशा में एक प्रयास बताया जा रहा है।
या फिर ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति?
कई विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका का असली मकसद हूती विद्रोहियों को कमजोर करना नहीं, बल्कि ईरान को घुटनों पर लाना है। ट्रंप प्रशासन के दौरान ईरान पर अधिकतम दबाव (Maximum Pressure) की नीति अपनाई गई थी, और वर्तमान प्रशासन भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।
- ईरान समर्थित समूहों को कमजोर करना,
- इजरायल को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सैन्य कार्रवाई को बढ़ावा देना,
- ईरान को परमाणु समझौते की मेज पर लाने के लिए क्षेत्रीय तनाव बढ़ाना,
ये सभी कदम एक व्यापक रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं।
क्या यह ट्रंप प्रशासन की तात्कालिक नीति का हिस्सा है?
कुछ रणनीतिकारों का मानना है कि अमेरिका का यह कदम डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति की एक झलक देता है, जिसमें तात्कालिक और अव्यवस्थित निर्णय लिए जाते हैं। लेकिन कुछ अन्य एक्सपर्ट्स इसे एक दीर्घकालिक रणनीति के तहत देख रहे हैं, जिसका मकसद ईरान को अंतरराष्ट्रीय दबाव में लाना और उसे अपने परमाणु कार्यक्रम पर फिर से बातचीत करने के लिए मजबूर करना है।